टहरौली(झांसी)- टहरौली क्षेत्र में किसानों के खेतों में हाइब्रिड मक्का बीज उत्पादन को बढ़ावा देकर स्थानीय कृषि में क्रांतिकारी बदलाव लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की जा रही है। यह कार्य इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (ICRISAT) की एक व्यापक परियोजना के तहत संचालित हो रहा है, जिसमें जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए इन-सीटू और एक्स-सीटू उपायों को अपनाया जा रहा है। इस परियोजना का नेतृत्व ICRISAT के क्लस्टर लीड-आईडीसी एवं प्रधान वैज्ञानिक, डॉ. रमेश सिंह कर रहे हैं।
इसी क्रम में भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIMR), नई दिल्ली के निदेशक डॉ. एच. एस. जाट द्वारा टहरौली में हाइब्रिड मक्का बीज उत्पादन पर कार्य किया जा रहा है। हाल ही में संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. भूपेंद्र कुमार ने इस परियोजना की प्रगति का आकलन करने के लिए परीक्षण प्लॉटों का निरीक्षण किया।
उच्च उत्पादकता वाली फसल किस्मों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, ICRISAT और ICAR-IIMR ने टहरौली में हाइब्रिड मक्का किस्मों DMRH 1308 और IMH 224 के परीक्षण पिछले वर्ष नवंबर में शुरू किए थे। इन हाइब्रिड किस्मों में मूंगफली जैसी फसलों का विकल्प बनने और किसानों को अधिक लाभदायक समाधान प्रदान करने की क्षमता है।
इस परीक्षण का उद्देश्य हाइब्रिड मक्का की क्षेत्रीय सफलता का मूल्यांकन करना और इसे बड़े पैमाने पर किसानों के खेतों तक पहुंचाना है। वर्तमान में हाइब्रिड मक्का बीज की बाजार कीमत रु. 700-800 प्रति किलोग्राम है, जो छोटे किसानों के लिए महंगा साबित होता है। हालांकि, स्थानीय स्तर पर बीज उत्पादन होने से इसकी लागत घटकर रु. 200-250 प्रति किलोग्राम तक आ सकती है, जिससे यह किसानों के लिए अधिक सुलभ और किफायती हो जाएगा।

यदि यह पहल सफल होती है, तो इससे न केवल कृषि उत्पादकता में वृद्धि होगी, बल्कि किसानों को सस्ते और गुणवत्तापूर्ण हाइब्रिड बीज उपलब्ध कराकर स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।
इस बीज उत्पादन परीक्षण की निगरानी और प्रबंधन ICRISAT के झांसी स्थित स्टाफ डॉ. अशोक शुक्ला, जीतेन्द्र पुनिया और राकेश द्वारा किया जा रहा है।

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