लखनऊ। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को निशुल्क शिक्षा का हक देता है, लेकिन लखनऊ के कई निजी स्कूलों ने इस कानून को ठेंगा दिखा रखा है। हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जनता दरबार में मुरादाबाद की एक बच्ची ने जब आरटीई के तहत एडमिशन न मिलने की शिकायत की, तो सीएम के निर्देश पर महज तीन घंटे में उसका दाखिला हो गया। यह मामला लखनऊ समेत प्रदेश के अन्य जिलों की हकीकत को उजागर करता है।
राजधानी में भी ऐसे हजारों उदाहरण मौजूद हैं। आंकड़ों के मुताबिक, लखनऊ में आरटीई के तहत चयनित 3000 बच्चे अब तक स्कूल प्रवेश का इंतजार कर रहे हैं, जबकि 2800 बच्चों ने निजी स्कूलों की मनमानी से तंग आकर दाखिले की उम्मीद छोड़ दी है। जयपुरिया, बाल गाइड, सीएमएस, और विश्वनाथ एकेडमी जैसे प्रतिष्ठित स्कूलों पर आरोप है कि उन्होंने सिस्टम की तमाम चेतावनियों के बावजूद आरटीई के छात्रों को प्रवेश नहीं दिया।
जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग की कई बार नोटिस और निर्देशों के बावजूद स्कूलों का रवैया टस से मस नहीं हुआ। एक जुलाई से नया शैक्षिक सत्र शुरू होने वाला है, लेकिन हजारों बच्चों का भविष्य अधर में लटका है। वहीं, डीएम द्वारा बनाई गई बीईओ और एसीएम की संयुक्त कमेटियां भी स्कूलों पर कोई असर नहीं डाल सकीं। (संवाद)
कोट
आरटीई के तहत चयनित हर बच्चे को प्रवेश देना अनिवार्य है। यदि किसी स्कूल ने मनमानी जारी रखी, तो उनकी एनओसी निरस्त कर संबंधित बोर्ड को रिपोर्ट भेजी जाएगी।
डॉ. प्रदीप कुमार, संयुक्त शिक्षा निदेशक, माध्यमिक