Pain of emergency: 'apology was not written then he was released from jail after four and a half months'

अमर उजाला ब्यूरो,
झांसी। 1975 में आपातकाल के दौरान जिसे चाहा, उसे पुलिस ने जेल में बंद कर दिया। फिर चाहें कोई शिक्षक हो या विद्यार्थी। समाचार पत्र मांगने पर लाठीचार्ज किया गया। अखबार बेचने पर नाखून उखाड़े गए। मजबूर किया गया। मगर हमने हिम्मत नहीं हारी। हर जुल्म और यातना सहन की। अमर उजाला से बातचीत के दौरान आपातकाल के दौरान का ये दर्द लोकतंत्र सेनानियों ने बताया किया है।

दिन था 21 नवंबर 1975, जब चिरगांव के ओमप्रकाश शर्मा (70) मानिक चौक में वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे। उन्होंने बताया कि तभी पुलिस फोर्स पहुंची और उन्हें पकड़कर जेल भेज दिया। उस दिन जेल में रसगुल्ले बने थे। साथ ही कैदियों की ओर से कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था। तब जेल में पहले से बंद साथियों ने रसगुल्ले से भरी थाली रखकर उनका स्वागत किया। 28 नवंबर को एक साथी ने जेल स्टाफ से अखबार मांगा। न देने पर साथी और स्टाफ में बहस हो गई। उस दिन जेल में लाठीचार्ज हुआ। बताया कि जेल में कई लोगों को उनके बेटे के साथ सरकारी विरोधी कार्य करने के आरोप में बंद कर दिया गया था। उस दौरान कोई सरकार के खिलाफ एक शब्द नहीं बोल पाता था। संघ के जनता समाचार पत्र के साथ एक व्यक्ति को पकड़ लेने पर उसके नाखून उखाड़ लिए गए थे। उन्होंने कहा कि तत्कालीन सरकार के कार्यकर्ता उनके परिजनों के पास जाकर डराया करते थे कि पकड़े गए लोग कभी नहीं छूटेंगे। माफीनामा लिखवा दो। मगर हमने माफीनामा नहीं लिखा। साढ़े चार महीने बाद जेल से छूटे।



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