पीएम फसल बीमा योजना की आड़ में सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये की चपत लगाई गई। अभी तक ऐसे मामले सामने आए जिसमें फर्जी खतौनी लगाकर बीमा की रकम हड़पी गई लेकिन झांसी में ऐसे भी कई गांव सामने आए जहां फर्जी गाटे के सहारे जालसाजों ने करोड़ों रुपये का मुआवजा गटक लिया। बबीना के गगौनी, डगरवाहा, बाजना समेत चिरगांव एवं मोंठ ब्लॉक के छह गांव में यह फर्जीवाड़ा उजागर हुआ है। जालसाजों ने मौके पर जमीन न होने पर भी करीब दस करोड़ रुपये का बीमा क्लेम हजम कर लिया।

फर्जी 161 खतौनी अपलोड की गई

पीएम फसल बीमा योजना के जरिये रबी सीजन (2024) में बांटे गए मुआवजे में रोजाना फर्जीवाड़े की नई परतें खुल रही हैं। बबीना ब्लॉक के अंतर्गत गागौनी गांव में 161 जालसाजों ने ऐसी जमीन के गाटे नंबर लगा दिए, जो गांव में थे ही नहीं। राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक गागौनी गांव में 439 कृषि योग्य प्लॉट हैं लेकिन जालसाजों ने पोर्टल पर 439 नंबर के बाद के गाटा नंबर दर्ज करा दिए। इस तरह से 161 खतौनी अपलोड की गई। इन सभी में जौ के नुकसान का दावा हुआ। इसके चलते औसतन 50-70 हजार रुपये की भरपाई भेजी गई। जब मौके पर जांच हुई तब ये गाटा गांव में मिले ही नहीं। यहां करीब दो करोड़ रुपये का फर्जी बीमा क्लेम लिया गया।

जालसाजों के खाते में पहुंच गए दस करोड़

बबीना के डगरवाहा एवं बाजना गांव में भी फर्जीवाड़ा करके करीब चार करोड़ रुपये का मुआवजा ले लिया गया। चिरगांव के पाडरी गांव में भी इसी पैटर्न पर गोलमाल हुआ। यहां भी जालसाजों ने वह नंबर दर्ज कराए, जिस नंबर की गांव में जमीन ही नहीं थी। यहां 450 से अधिक फर्जी गाटों के सहारे मांगे क्लेम पर करीब दो करोड़ रुपये का भुगतान हुआ। मोंठ के गतारा गांव में फर्जीवाड़ा करके डेढ़ करोड़ से अधिक की बीमा राशि हड़प ली गई। मजे की बात यह कि बीमा पोर्टल पर फर्जी गाटे अपलोड किए जाने के बाद भी बीमा कंपनी ने इनको एप्रूव कर दिया। इस सीजन में झांसी में करीब 18 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया, इनमें 10 करोड़ रुपये जालसाजों के खाते में पहुंच गया। वहीं, खरीफ सीजन 2025 में भी गड़बड़ी की आशंका जताई जा रही है। उपनिदेशक (कृषि) महेंद्र पाल सिंह का कहना है कि इस तरह के मामले सामने आए। इसकी जांच कराई जा रही है।

गैर ऋणी किसानों के नाम पर हुआ खेल

पीएम बीमा फसल योजना में शामिल होने के लिए प्रीमियम भरने के दो तरीके होते हैं। पहले तरीके में केसीसी कार्ड धारक किसान की मंजूरी मिलने पर बैंक से प्रीमियम की राशि जमा हो जाती है लेकिन, जिन किसानों के नाम केसीसी नहीं है वह जनसुविधा केंद्र से अपनी प्रीमियम राशि भरते हैं। इन्हीं गैर ऋणी किसानों के नाम पर सबसे अधिक खेल हुआ। नब्बे फीसदी से अधिक फर्जीवाड़ा इन गैर ऋणी किसानों की आड़ में हुआ है।



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