मैक्स हॉस्पिटल पटड़गंज की डॉक्टर करुणा ने बताया कैसे ये थेरेपी बदल रही जीवन
झांसी- भारत में कैंसर की समस्या एक बड़ी स्वास्थ्य चिंता के रूप में बढ़ रही है. कैंसर से हर अनुमानित 8 लाख लोगों की मौत हो जाती है और आने वाले सालों में इसकी संख्या बढ़ने की प्रबल आशंका है. एक्यूट ल्यूकेमिया/एग्रेसिव लिम्फोमा के मरीजों की संख्या भी अच्छी खासी है.काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी सेल्स यानी CAR-T तकनीक के आने से ऐसे मरीजों को काफी उम्मीद मिली है जो बार-बार थेरेपी लेने के बावजूद भी ठीक नहीं हो पाते हैं या वो मरीज को स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के लिए फिट नहीं होते हैं. ऐसे मरीजों के लिए ये सीएआर-टी काफी लाभदायक है.मैक्स हॉस्पिटल पटपड़गंज (नई दिल्ली) में हेमेटोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट की कंसल्टेंट डॉक्टर करुणा झा ने CAR-T की भूमिका के बारे में बताया, ”कैंसर कोशिकाएं अप्रत्याशित होती हैं और कई बार कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाती हैं. ये क्लोनल इवॉल्यूशन और बीमारी की प्रतिरोधी प्रकृति के कारण हो जाता है. टी कोशिकाएं एक प्रकार की वाइट ब्लड कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए जाना जाता है. काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स (सीएआर) डब्ल्यूबीसी होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को उनकी सतह तक टारगेट करते हैं. CAR-T कोशिकाओं को पहली जीवित दवाएं भी कहा जाता है, क्योंकि एक बार जब वे एक्टिवेट हो जाते हैं और शरीर में चले जाते हैं तो वे शरीर में रहते हैं और लंबे समय तक अपना असर दिखाते हैं.”अमेरिका में ब्लड कैंसर, मुख्य रूप से लिम्फोमा और ल्यूकेमिया के कुछ रूपों, मल्टीपल मायलोमा के इलाज के लिए छह सीएआर टी-सेल उपचारों को मंजूरी दी गई है.अक्टूबर 2023 में सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने NexCAR19 को अप्रूवल दिया था और ये भारत की पहली CAR-T सेल थेरेपी थी.टाटा मेमोरियल सेंटर ने अमेरिकन सोसाइटी ऑफ हेमेटोलॉजी की बैठक में सीएआर-टी पर एक डेटा प्रस्तुत किया है. 53 रोगियों (लिम्फोमा के साथ 38 और ल्यूकेमिया के साथ 15) का मूल्यांकन करने पर पता चला कि लिम्फोमा के 38 में से 26 मरीजों यानी 68% को इलाज का फायदा पहुंचा जबकि ल्यूकेमिया के 15 में 10 मरीजों यानी 72% को इस थेरेपी का लाभ मिला. ल्यूकेमिया से जुड़े मामलों में कम्प्लीट रेस्पॉन्स मिला, उन मरीजों में कैंसर का कोई संकेत नहीं बचा था.CAR-T के संकेत: इस थेरेपी की कब जरूरत पड़ती है, इसके बारे में भी कई जानकारी हैं. अगर रिलैप्स की स्थिति हो यानी मरीज को ठीक होने के बाद फिर से लक्षण अनुभव हो रहे हों, लिम्फोमा के मामले में ऐसा बार-बार हो रहा हो (डीएलबीएल, एचजीबीसीएल, पीएमबीसीएल, एफएल ग्रेड 3 बी), मरीज स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के लिए फिट न हो, 4 लाइन थेरेपी के बावजूद मायलोमा फिर से हो रहा हो तो इस थेरेपी का विकल्प चुना जाता है.मैक्स अस्पताल पटपड़गंज में हेमेटोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग पूरी तरह से बीएमटी के लिए अत्याधुनिक एडवांस वर्ल्ड क्लास सुविधाओं से सुसज्जित है. यहां एचईपीए-फिल्डर्स रूम, स्पेशलाइज्ड डॉक्टर और आईसीयू बैकअप के साथ सही फीस के साथ इलाज किया जाता है.