राम मंदिर की दीवारों पर अंकित की गई मंदिर आंदोलन से लेकर मंदिर निर्माण तक की गाथा।
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नव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को हुई तो सदियाें का संघर्ष भी फलीभूत हुआ। राम मंदिर का सपना यूं ही नहीं साकार हुआ है, इसके पीछे एक सुदीर्घ संघर्ष यात्रा है। रामलला के दरबार में हाजिरी लगाने वाले दर्शनार्थी भी इस संघर्ष की दास्तां से रूबरू हो रहे हैं, क्योंकि ट्रस्ट ने राम मंदिर की दीवारों पर इस पूरी यात्रा को दर्शाया है। दीवारों पर वर्ष 1528 से लेकर 22 जनवरी 2024 तक की पूरी यात्रा को अंकित किया गया है।
वंशी पहाड़पुर के लाल पत्थरों पर अंग्रेजी व हिंदी भाषा में पूरी कहानी अंकित की गई है। शुरुआत में बताया गया है कि प्राचीन काल में, इस स्थान पर सबसे पहले मंदिर का निर्माण महाराजा विक्रमादित्य ने ऋषि लोमश के निर्देशों के तहत और कामधेनु की उपस्थिति में करवाया था। इसके बाद वर्ष 1528 की कहानी शुरू होती है। इसमें लिखा है कि 1528 ई. में एक विदेशी आक्रमणकारी की सेना ने इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया और इस स्थान पर तीन गुंबदों वाली एक संरचना का निर्माण किया जो बाबरी मस्जिद के नाम से प्रसिद्ध हुई।
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इसके बाद उन इतिहासकारों का जिक्र है, जिन्होंने अयोध्या व राम मंदिर के अस्तित्व को माना है। इनमें ब्रिटिश अधिकारी पी. कार्नेगी व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम का भी जिक्र है। इसके बाद निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुबर दास की ओर से मंदिर को लेकर वर्ष 1853 में किए गए पहले मुकदमे का जिक्र है। यहां 22 दिसंबर 1949 को रामलला के प्राकट्य की भी कहानी अंकित की गई है। इसके बाद के माहौल को भी बताया गया है। राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य डॉ अनिल मिश्र कहते हैं कि युवा पीढ़ी मंदिर आंदोलन के बारे में जान सके, इस उद्देश्य से दीवारों पर इस यात्रा को अंकित किया गया है।
आडवाणी की रथयात्रा का भी है उल्लेख
– राम मंदिर की दीवारों पर वकील गोपाल सिंह विशारद, परमहंस रामचंद्र दास व निर्मोही अखाड़ा की ओर से किए गए मुकदमे की लंबी कहानी है। देवकी नंदन अग्रवाल ने रामलला के सखा के रूप में जो मुकदमा दायर किया था, वह भी लिखा है। सितंबर वर्ष 1990 में अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के आह्वान के लिए समर्थन जुटाने के लिए भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथयात्रा निकाली थी, इसकी भी पूरी कहानी लिखी है।
बाबरी विध्वंस से लेकर मंदिर निर्माण तक की गाथा को दर्शाया
– दीवारों पर बाबरी विध्वंस से लेकर मंदिर निर्माण तक की पूरी यात्रा को दर्शाया गया है। छह दिसंबर वर्ष 1992 की घटना, वर्ष 2003 में हुई खोदाई व सर्वेक्षण में दसवीं शताब्दी के उत्तर भारतीय शैली के विष्णु मंदिर के अवशेष मिलने की भी कहानी है। 20 सितंबर वर्ष 2010 को अयोध्या मामले में आए अदालत के निर्णय के बारे में बताया गया है। इसके बाद नौ नवंबर 2019 को मंदिर के हक में आए निर्णय को भी बताया गया है। निर्णय के बाद मंदिर के भूमि पूजन से लेकर प्राण प्रतिष्ठा तक की कहानी अंकित की गई है।