24,497 करोड़ का अनुपूरक बजट उत्तर प्रदेश सरकार की उस सोच को उजागर करता है, जिसमें विकास का मतलब केवल नई घोषणाएं नहीं, बल्कि मौजूदा आर्थिक ढांचे को मजबूत करना है। यह बजट न तो लोकलुभावन है और न ही चुनावी; बल्कि यह फिस्कल मैनेजमेंट और निवेश रणनीति का आईना है। इसे यूं समझा जा सकता है कि 100 रुपये में से करीब 60 रुपये उद्योग, ऊर्जा और वित्तीय स्थिरता पर खर्च किए गए हैं।
सबसे बड़ा संकेत 5,000 करोड़ रुपये के ऋण सेवा प्रावधान से मिलता है। जिसके जरिये बताया गया है कि कर्ज, ब्याज और वित्तीय दायित्वों में किसी भी तरह की ढिलाई राज्य की आर्थिक सेहत को नुकसान पहुंचा सकती है। यह प्रावधान बताता है कि सरकार की प्राथमिकता पहले राजकोषीय विश्वसनीयता बनाए रखने की है।
दूसरा बड़ा फोकस उद्योग और अवस्थापना विकास पर है। भारी एवं मध्यम उद्योग, निवेश प्रोत्साहन नीतियों और एक्सप्रेस-वे परियोजनाओं के लिए 4,874 करोड़ से अधिक का प्रावधान यह दर्शाता है कि फोकस रोजगार सृजन के लिए सरकारी भर्तियों नहीं बल्कि निजी निवेश के जरिए रोजगार को आगे बढ़ाने की रणनीति है। गंगा एक्सप्रेस-वे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस-वे और जेवर एयरपोर्ट कनेक्टिविटी जैसी परियोजनाएं यह साफ करती हैं कि यूपी को लॉजिस्टिक हब बनाने की रणनीति पर काम हो रहा है।
ऊर्जा क्षेत्र को 4,521 करोड़ देकर सरकार ने डिस्कॉम घाटे, वितरण सुधार और ऊर्जा अवसंरचना को अपनी शीर्ष प्राथमिकताओं में रखा है। बिना मजबूत ऊर्जा व्यवस्था के औद्योगिक विकास संभव नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि सामाजिक क्षेत्र भी पीछे नहीं हैं। स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और सामाजिक सुरक्षा मदों में हजारों करोड़ का प्रावधान यह दिखाता है कि विकास और कल्याण के बीच संतुलन साधने की कोशिश की गई है।
