गेट न खुलने से नाराज लोगों ने चलाए पत्थर-

अयोध्या- रेल खंड पर कोतवाली क्षेत्र के मलेथू कनक हाल्ट रेलवे स्टेशन पर मंगलवार की देर शाम ट्रेन पर न बैठ पाने से नाराज श्रद्धालुओं ने हंगामा किया। बाद में पत्थरबाजी भी की। इससे ट्रेन की कई बोगियों के शीशे टूट गए। कुछ श्रद्धालुओं के घायल होने की सूचना भी है।

बताया गया कि अयोध्या से प्रयागराज जा रही स्पेशल महाकुंभ ट्रेन संख्या 64222 लगभग 07:20 बजे मलेथू कनक हाल्ट रेलवे स्टेशन पर पहुंची। ट्रेन में श्रद्धालुओं की संख्या ज्यादा थी, जिसके चलते ट्रेन में मौजूद यात्रियों ने कई बोगी का गेट अंदर से बंद कर दिया। स्टेशन पर जैसे ही ट्रेन रुकी, श्रद्धालुओं ने ट्रेन में घुसने का प्रयास किया।

कुछ तो कड़ी मशक्कत के बाद अंदर बैठ गए, लेकिन करीब 150 श्रद्धालु नहीं बैठ पाए और ट्रेन चलने लगी। ट्रेन में न बैठ पाने से आक्रोशित श्रद्धालुओं ने ट्रेन पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया। पत्थरबाजी में ट्रेन की बोगी का कई शीशा क्षतिग्रस्त हो गया। टूटा कांच प्लेटफार्म पर बुधवार को भी पड़ा था। ट्रेन में बैठे गार्ड को भी चोट लगने की जानकारी मिली है।

वहीं, ट्रेन में सवार कुछ यात्रियों ने इसकी शिकायत रेलवे पुलिस सुल्तानपुर से की है। गेटमैन मोहम्मद वसीम ने बताया कि रेलवे के अधिकारियों को जानकारी दी गई है। बीकापुर कोतवाल लालचंद सरोज ने बताया कि पत्थरबाजी नहीं हुई थी। ट्रेन की बोगी का गेट बंद होने से यात्री गेट खोलने के लिए दरवाजा पीट रहे थे।

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स्टेशन पर आई गाड़ी के नहीं खुले दरवाजे तो कर दिया पथराव, सहमे महिलाएं-बच्चे”,
झांसी- श्रद्धालुओं को लेकर प्रयागराज जा रहीं ट्रेनों पर हरपालपुर और छतरपुर स्टेशन पर लोगों ने पथराव कर दिया। ट्रेनों में बैठे लोगों की ओर से कोच के दरवाजे न खोले जाने से चढ़ने वाले यात्री नाराज हो गए और उत्पात मचाया। इससे कई यात्रियों की ट्रेनें भी छूट गईं। बाद में मौके पर पहुंची आरपीएफ ने स्थिति को संभाला।

झांसी से चलकर प्रयागराज जा रही पैसेंजर ट्रेन पर सोमवार की रात हरपालपुर में कुछ लोगों ने पथराव कर दिया। इससे कोचों की खिड़की और दरवाजों के शीशे क्षतिग्रस्त हो गए। लगभग 10 मिनट तक लोग उत्पात मचाते रहे। लोगों ने आपात खिड़की तोड़कर भी पत्थर फेंके। इससे यात्रियों में अफरा-तफरी मची रही। वहीं, अंबेडकर नगर-प्रयागराज एक्सप्रेस पर छतरपुर में पथराव हुआ। मौके पर पहुंची आरपीएफ ने स्थिति संभाली। इन दोनों ट्रेनों में पहले से ही यात्रियों की भारी भीड़ जमा थी। स्लीपर कोचों में भी पैर रखने की जगह नहीं थी।

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