झाँसी-अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर सिविल लाइन ग्वालियर रोड स्थित कुंजबिहारी मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के चरण दर्शन एवं उनकी प्राण प्रियतमा राज राजेश्वरी राधिका सर्वेश्वरी जू की मनोहारी छवि की एक झलक पाने की ललक को मन में संजाये नगर के हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ शुक्रवार को मंदिर में उमड़ी। मंदिर में भगवान श्री कुंजबिहारी सरकार के चरण दर्शन का सिलसिला प्रात: से ही शुरु हो गया जो देर रात्रि तक चलता रहा। सायंकाल मंदिर में विराजमान सभी विग्रह मूर्तियों का पावन अभिषेक उपरांत श्रृंगार कर झांकी सजायी गयी तथा भगवान श्रीकुंजबिहारी एवं राधिका जू के पावन चरणों में दिव्य एवं भव्य फूल बंगला सजा कर अर्पित किया गया। आपको बता दें इस माह से प्रारंभ हुई फूल बंगला श्रृंगार सेवा गुरु पूर्णिमा तक लगभग तीन माह प्रतिदिन जारी रहेगी तथा प्रत्येक मंगलवार को विशेष आयोजन होगा। देशी-विदेशी फूलों की महक से कुंजबिहारी मंदिर का प्रांगण महक उठा तो दर्शनार्थी भी भगवान की छवि निहारते ही मोहित हो उनके समक्ष पहुंचते ही सुधबुध खोया सा प्रतीत हा रहा था। सायंकाल शास्त्रीय संगीत संध्या का आयोजन किया गया। जिसमें बुन्देलखण्ड के ख्याति प्राप्त कलाकारों ने पद गायन किये तथा वातावरण को भक्तिमय बना दिया। इस मौके पर बुन्देलखण्ड धर्माचार्य महंत राधामोहन दास महाराज ने बताया कि अक्षय तृतीया के दिन किया गया कोई पुण्य कभी क्षय नहीं होता, आज ही के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने माता यशोदा सहित सभी ब्रजवासियों को भगवान बद्रीनारायण के चरण दर्शन कराये थे, इसी दिन सुदामा ने अपने बाल सखा श्रीकृष्ण को तंदुल भेंट किये थे और इसी दिन भगवान परशुराम का प्राकट्य हुआ, इसी दिन स्वर्ग से पतित पावनी मां गंगा मैया का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था और इसी दिन भगवान शंकर ने कुबेर कुबेरपति होने का वरदान दिया था,इसलिये आज के दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है। संगीत गायन एवं दर्शनों का सिलसिला देर रात्रि तक चलता रहा। तदुपरांत राधामोहन दास महाराज ने फूलों से ही भगवान की आरती कर पुष्पसेज पर शयन कराया तथा सभी को शुभाशीष दिया।इस दौरान मंदिर में आये सभी श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया गया। भीड को व्यवस्थित करने हेतु महिला एवं पुरुष दर्शनार्थियों की पृथक पृथक कतारें लगाकर दर्शन कराये गये। तो श्रद्धालुओं की पादुका एवं जल सेवा हेतु भक्त मण्डल की ओर निशुल्क व्यवस्था की गयी। व्यवस्था संचालन में मनमोहन दास, पवनदास एवं बालकदास महाराज का विशेष योगदान रहा।