झांसी। महानिदेशक द्वारा अनुशासनात्मक कार्यवाही के अन्तर्गत वेतन अवरूद्ध करने पर रोक लगाई गई है। प्रायः देखने में आता है कि शिक्षकों के विरुद्ध अपेक्षित परिणाम प्राप्त न होने या विभागीय आदेश अवहेलना का दोष मढ़ते हुए वेतन अवरूद्ध कर दी जाती है। उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक नियमावली तथा उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद कर्मचारी वर्ग नियमावली को कोड करते हुए बताया गया कि वेतन अवरूद्ध करना किसी भी प्रकार से उल्लिखित नहीं है। जबकि इसके उलट बेसिक शिक्षाधिकारी छोटी-छोटी गलतियों का भय बनाकर बड़ी संख्या में शिक्षकों का वेतन रोक देते हैं। इससे शिक्षकों के लम्बित बिल अवशेष देयक के रूप में लेखा कार्यालय में इकट्ठा हो जाते हैं। जहां शिक्षकों को बार-बार चक्कर लगाकर परेशान होना पड़ता है। कई बार उनका शोषण होने का मामला सामने आता है। फिलहाल महानिदेशक के आदेश पर वेतन अवरूद्ध के खेल पर ब्रेक लगेगा। वहीं न्यायालय द्वारा भी वेतन अवरूद्ध को विधिक दण्ड नहीं मानने का आदेश किया गया है। डीजी द्वारा नियुक्ति प्राधिकारी को स्पष्ट आदेश दिया है कि अत्यन्त गम्भीर प्रकरण को छोड़कर वेतन अथवा वेतन वृद्धि न रोकी जाए। उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष एवं जिलाध्यक्ष जितेन्द्र दीक्षित का इस मामले में कहना है कि जनपद में भी कई अनावश्यक प्रकरणों में शिक्षकों की वेतन अवरूद्ध कर दी जाती है, जो न्यायसंगत नहीं है। उन्होंने बताया कि जिला वित्त एवं लेखाधिकारी बेसिक शिक्षा ने भी बीएसए को पत्र लिखकर अनुशासनात्मक कार्यवाही के नाम पर वेतन अवरूद्ध के दिए गए निर्गत आदेशों के अनुपालन में असमर्थता जताते हुए उच्चाधिकारी के आदेश का हवाला दिया है। प्रवक्ता अब्दुल नोमान का कहना है कि किन्ही प्रकरणों में शिक्षक अथवा कर्मचारी को दोषी पाए जाने पर कार्यवाही किया जाना अपेक्षित हो, तो उनके गुण/दोष के अनुपात में दण्ड निर्धारित किया जाए। शिक्षकों व कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही का सम्पूर्ण विवरण मानव सम्पदा पोर्टल पर अपलोड किए जाने के आदेश के बावजूद भी ऐसा नहीं किया जा रहा है। तत्काल प्रभाव से वेतन बन्द कर देना अनुचित है। अब महानिदेशक द्वारा इस सम्बन्ध में स्पष्ट कर दिए जाने से शिक्षकों को शोषण से मुक्ति मिल सकने की उन्होंने उम्मीद जताई है।

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