भारतभूमि आदिकाल से ही त्याग, तप और धर्म का अखंड स्रोत रही है। इस धरा के पर्वतों में ऋषियों की साधना संचित है, नदियों में वेदों की ऋचाएं प्रवाहित होती हैं और वायु में सनातन संस्कृति का शांत संदेश गूंजता है। इतिहास साक्षी है कि जब-जब इस पुण्य भूमि पर संकट का अंधकार छाया, तब-तब कोई ज्योति प्रज्वलित होकर जनमानस को जागृत करती रही। बीसवीं शताब्दी के आरंभ में भी ऐसा ही समय था। एक ओर पराधीनता की बेड़ियों ने राष्ट्र की आत्मा को कुचल दिया था, दूसरी ओर विभाजनकारी प्रवृत्तियां और सांस्कृतिक दिग्भ्रम समाज को दिशाहीन बना रहे थे। राष्ट्र जीवन कराह रहा था और जनमानस भ्रमित होकर निसहाय प्रतीत होता था।
ऐसे ही विषम समय में विजयदशमी के पावन पर्व पर, 1925 में नागपुर की पुण्यभूमि पर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने राष्ट्र जागरण का एक दीप प्रज्ज्वलित किया। एक शताब्दी पूर्व प्रज्ज्वलित वह छोटी-सी ज्योति आज विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी सांस्कृतिक संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के रूप में अखंड राष्ट्रदीप बनकर भारत की आत्मा को आलोकित कर रही है। संघ का जन्म किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा से नहीं, बल्कि भारतीय आत्मा की पुकार के रूप में हुआ। डॉ. हेडगेवार ने अनुभव किया कि स्वतंत्रता तभी सार्थक होगी, जब समाज भीतर से दृढ़, संगठित और चरित्रवान बनेगा। उन्होंने संकल्प लिया कि ऐसे नागरिक तैयार किए जाएं, जिनकी आस्था सनातन भारतीय मूल्यों में दृढ़ हो, जो मां भारती के आराधक हों और जिनके जीवन का लक्ष्य राष्ट्र सेवा हो। जो यह उद्घोष कर सकें, राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा इसीलिए मात्र खेलकूद या व्यायाम का स्थान नहीं है, अपितु चरित्र निर्माण की कार्यशाला है। यहां अनुशासन और सहयोग का पाठ पढ़ाया जाता है। यहां सेवा और समर्पण के बीज बोए जाते हैं। भगवा ध्वज के समक्ष, सर्वदा वंदन मातृभूमि को, इस गीत का सामूहिक गायन प्रत्येक स्वयंसेवक के हृदय में यह संकल्प दृढ़ करता है कि उसका जीवन किसी साध्य का साधन नहीं, अपितु राष्ट्र-हितार्थ समर्पित साधना है। यह प्रार्थना मात्र उच्चारित शब्द नहीं, अपितु राष्ट्र-कार्य का आह्वान है, जो प्रत्येक स्वयंसेवक को भारत माता की सेवा हेतु प्रेरित करता है। संघ के सौ वर्ष केवल संगठनात्मक विस्तार से कहीं अधिक, इसकी अनुशासित शाखाओं, सतत सेवा और राष्ट्र-निर्माण के प्रति समर्पण के प्रमाण हैं। आज, 51,000 से अधिक स्थानों पर इसकी 83,000 शाखाएं और शिक्षा, कल्याण, स्वावलंबन, आमोदय और आपदा-राहत के क्षेत्र में कार्यरत 1,29,000 से अधिक सेवा केंद्र हैं। महान शिक्षाविद नानाजी देशमुख की तरफ से स्थापित सरस्वती शिशु मंदिर आज भारतीय मौलिक और आधुनिक शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र है। यह संघ को केवल एक संगठन नहीं, बल्कि भारत की आंतरिक शक्ति और जीवंत चेतना का प्रतीक बनाता है।
राजनीतिक स्वतंत्रता ही नहीं सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी उद्देश्य : स्वतंत्रता के बाद, जब राजनीति सत्ता-संघर्ष और व्यक्तिगत लाभ की ओर झुकने लगी, तो समाज में निराशा और विखंडन की आशंकाएं उत्पन्न हुईं। उस दौर में भी, संघ ने अपने संगठन और सेवा के माध्यम से राष्ट्र की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में प्रवाहित किया। इसने देश को सिखाया कि राष्ट्र निर्माण केवल संसदीय बहसों या सरकारी नीतियों से नहीं, बल्कि समाज के हर स्तर पर अनुशासित, सदाचारी और चरित्रवान नागरिकों के निर्माण से होगा। संघ का मानना था कि स्वतंत्रता का अर्थ केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण और आध्यात्मिक स्वतंत्रता भी है।
1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, संघ के स्वयंसेवकों ने स्वेच्छा से राष्ट्र सेवा की। उन्होंने सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों के लिए राहत शिविरों, चिकित्सा सहायता और रसद की व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आपातकाल के दौरान जन मनोबल बनाए रखने और अनुशासन बनाए रखने में स्वयंसेवकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यह इसका एक उदाहरण है। संघ केवल एक संगठन नहीं, बल्कि राष्ट्र सेवा का एक माध्यम है। प्राकृतिक आपदाओं के समय भी संघ के स्वयंसेवक सबसे पहले सहायता के लिए आगे आते हैं। उनके लिए जाति या लिंग का कोई भेदभाव नहीं है। पूरा समाज ही उनका परिवार है और पूरा भारत उनका घर है। राज्य के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रेरक मार्गदर्शन अतुलनीय है। संघ ने अपने अनुशासित स्वयंसेवकों और संगठित प्रयासों से इस ऐतिहासिक कार्य का नेतृत्व किया। यह केवल एक आंदोलन नहीं, बल्कि मोक्ष के शाश्वत आह्वान की पूर्ण परिणति थी।
वैचारिक शक्ति और समाज सेवा के आदर्श से पोषित हुआ संगठन : संघ ने सुनिश्चित किया कि यह प्रयास शांतिपूर्ण, व्यवस्थित और अनुशासित तरीके से संचालित हो, जिससे न केवल लोगों की शिक्षा बढ़े, बल्कि राष्ट्रीय चेतना और सांस्कृतिक पहचान को भी प्रबल समर्थन मिले। इस महान युग में संघ का योगदान दर्शाता है कि संगठन न केवल सेवा और अनुशासन के सिद्धांतों को कायम रखता है, बल्कि राष्ट्रीय और सांस्कृतिक कार्यों के लिए एक सतत प्रेरक शक्ति के रूप में भी कार्य करता है।
राष्ट्र निर्माण में योगदान
डॉ. हेडगेवार के दर्शन और आदर्शों को आगे बढ़ाते हुए, संघ ने राष्ट्र को ऐसे नेता प्रदान किए जिन्होंने देश की राजनीति और शासन को आकार दिया। दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन मूल्य-आधारित नेतृत्व का आदर्श है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने उदार राष्ट्रवाद और काव्यात्मक संवेदनशीलता से जनचेतना को गहराई से छुआ। उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत को विश्व के समक्ष एक परमाणु-शक्ति संपन्न राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। वर्तमान में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता के अमर युग के सारथी के रूप में भारत को नई दिशा दे रहे हैं। उन्होंने वैश्विक मंच पर भारत का स्थान अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। उनके परिश्रम, देशभक्ति और प्रशासनिक कौशल ने उन्हें एक नए भारत के निर्माता के रूप में स्थापित किया है।
संघ की शाखाओं का तेज विस्तार
यह संयोग मात्र नहीं है कि ये सभी महापुरुष, संघ की शाखाओं में पोषित मूल्यों और विचारधारा से प्रेरित होकर राष्ट्रसेवा के पथ पर अग्रसर हुए। आज, वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के नेतृत्व में, संघ नई ऊंचाइयों को छू रहा है। उनका दृष्टिकोण समसामयिक, समावेशी और व्यावहारिक है। उन्होंने युवाओं को केवल शाखा तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि जीवन के हर पहलू में संघ के आदर्शों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया। संघ का तर्क है कि भारत का भविष्य केवल तकनीकी प्रगति से ही नहीं, बल्कि सुदृढ़ तकनीकी शक्ति और सांस्कृतिक दृढ़ता से भी निर्धारित होगा।
सामाजिक समरसता के लिए पंच परिवर्तन का आह्वान
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी महोत्सव किसी संगठन के इतिहास का उत्सव नहीं है, बल्कि भक्ति, अनुशासन और देशभक्ति से उपजी उस साधना को नमन है, जिसने भारत की चेतना को जागृत किया और मां भारती के परम वैभव का मार्ग प्रशस्त किया।
संघ ने पंच परिवर्तन का आह्वान किया है। पर्यावरण संरक्षण-जो भारतीय संस्कृति के माध्यम से प्रकृति के साथ संतुलन स्थापित करेगा। पारिवारिक चेतना-जो परिवार को संस्कारों और मूल्यों का केंद्र बनाएगी। स्वदेशी आधारित जीवनशैली-जो आत्मनिर्भर भारत का मार्ग प्रशस्त करेगी और नागरिक कर्तव्य बोध-जिससे प्रत्येक नागरिक राष्ट्रहित को अपनी दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाए।