बबीना-झांसी (उत्तर प्रदेश)-बबीना कस्बे में बारह वर्षों से अनवरत जारी मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन इस बार भी उत्साहपूर्वक संपन्न हुआ। साहित्यकार, कवि एवं शायर सुशील जैन के आवास पर आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. के. के. साहू (झांसी) ने की, जबकि बुंदेली साहित्य के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर प्रताप नारायण दुबे एवं राम बिहारी सोनी ‘तुक्कड़’ मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में झांसी के प्रसिद्ध साहित्यकार काशीराम मधुप भी शामिल हुए।

गोष्ठी की शुरुआत मोहन सोनी ‘अटल’ द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुई। इसके बाद उन्होंने समाज पर आधारित रचना प्रस्तुत की—
“समय की मांग है समय के साथ चल के दिखाओ,
दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ।”

झांसी से पधारे जी.पी. मधुरेश ने सामाजिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए पढ़ा—
“प्रयाग के इस कुंभ में, अति भक्तों की भीड़,
सुंदर व्यवस्था बुरी, तोड़ रहे हैं रीढ़।”

काशीराम मधुप ने दो गीत प्रस्तुत किए, जिनमें भावनात्मक अपील थी—
“उरिण कर दो हे मां, तेरे गुनहगार हैं हम।”

राम बिहारी सोनी ‘तुक्कड़’ ने अपने अनोखे अंदाज में पढ़ा—
“जाने कौन किए चल देने, कौन घरी दिन रैने।”

प्रताप नारायण दुबे ने व्यंग्यात्मक शैली में वर्तमान समाज की सच्चाई पर कटाक्ष किया—
“मुफ्तखोर दुनिया में देखो कैसो मजा उड़ा रए।”

गोष्ठी के आयोजक एवं संचालक सुशील जैन ने अपनी रचना में जीवन के महत्व को दर्शाया—
“जीवन क्या है रिश्ता है कुछ सांसों से,
जो टूटता अवश्य है, टूटता अनायास है।”

काशीराम अकेला ने पढ़ा- “नए वर्ष का स्वागत करे, नूतन सत प्रबल विचारों सा।”

प्रवेश नायक ने भी कविता पढ़ी।
गोपाल नारायण द्विवेदी कुमुद ने पढ़ा- “जे टनाटन टांगें, कितनो घी गुर मांगें।”

विनोद जैन शास्त्री ने पढ़ा- “सत्यानाश देश को हो गओ, गठबंधन के मारें।”

प्रमोद खरे ने भी अपनी रचना पढ़ी,

इस गोष्ठी में प्रकाश जैन, रमेश साहू ठेकेदार, महेंद्र सिघई, सुरेश पुरोहित, राम जीवन दुबे, महेंद्र चकरपुर, सुरेश सिंघई, सोनू यादव, मंगल यादव, प्रवीण कोतवाल, कल्लू सिंघई, विपुल जैन सहित अनेक साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।

By Admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *