
बबीना (झांसी)- रमजान का महीना मुसलमानों के लिए विशेष महत्व रखता है, जिसमें संयम, समर्पण और आत्मशुद्धि पर बल दिया जाता है। इस दौरान रोज़े रखकर, नमाज़ अदा करके और कुरान की तिलावत करके, व्यक्ति अपनी आत्मा को पवित्र करता है और अल्लाह की निकटता प्राप्त करता है।
इबादत और आत्मशुद्धि का महत्व
बबीना निवासी मुफ़्ती फ़रहान साहब, जामा मस्जिद बबीना, के अनुसार, रमजान के महीने में की गई इबादत अत्यंत प्रभावशाली होती है। रोज़े के माध्यम से व्यक्ति खान-पान सहित अन्य दुनियावी आदतों पर संयम रखता है, जिसे अरबी में “सोम” कहा जाता है। इसके साथ ही, तरावीह और नियमित नमाज़ पढ़ने से बार-बार अल्लाह का ज़िक्र होता रहता है, जिससे इंसान की आत्मा (रूह) पाक-साफ़ होती है।
गलतियों से तौबा और जकात का महत्व
मजार कमेटी के अध्यक्ष, वरिष्ठ पत्रकार शेख मुख्तार कुरैशी (भोलू कुरैशी) बबीना, कहते हैं कि इंसान गलतियों का पुतला होता है। रमजान का महीना अपनी गलतियों से तौबा करने और उन्हें सुधारने का उत्तम अवसर प्रदान करता है। इस महीने में जकात देने का भी विशेष महत्व है, जिसमें अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत गरीबों में बांटा जाता है। जकात देने से व्यक्ति के माल और कारोबार में अल्लाह की बरकत होती है। इसके अलावा, ईद से पहले फितरा दिया जाता है, जिसमें परिवार के प्रत्येक सदस्य के हिसाब से ढाई किलो गेहूं या उसकी कीमत की रकम इकट्ठा कर जरूरतमंदों में बांटी जाती है।
रमजान: आत्मसंयम और तपस्या का प्रतीक
रमजान का महीना आत्मसंयम और तपस्या का प्रतीक है। अरब की भीषण गर्मी में तपते पत्थर से नसीहत लेते हुए, जैसे वह सूरज की किरणों से तप रहा है, वैसे ही हमें अल्लाह की इबादत में तपकर अपने तन-बदन और रूह को पाक-साफ़ बनाना चाहिए।
देश की उन्नति और अमन-शांति के लिए दुआ
शेख मुख्तार कुरैशी ने कहा कि हमें सियासी चालबाजियों और दुश्मन मुल्कों की हरकतों को समझते हुए, भारत की उन्नति के रास्ते पर चलना चाहिए। हम सबको देश की अमन-शांति के लिए मिलकर दुआ मांगनी चाहिए, ताकि हमारा देश दुनिया के सामने एक महाशक्ति बनकर खड़ा हो सके।